आधुनिकता की होड़ में
क्यूं मर्यादा भूल गये;
प्रदर्शन करना क्यों,
किसलिये जरूरी है,
कपड़े कम पहनने की,
ये कैसी मजबूरी है?
युवा हुआ है पागल,
देख तमाशा नंगेपन का,
मॉं, बेटी और बहन,
भूल कर केवल तन दिखता,
सावन के अंधे को जैसे,
हर ओर हरापन दिखता है|
शिक्षा सब व्यापार हो गई,
शिक्षक हैं व्यापारी,
नेता सारे चोर हो गये,
बहरी सरकारें सारी|
लानत है जनता पर ऐसी,
जो करती इनकी पूजा,
बहनों की इज्जत लुटने पर,
अपनी बहनों को फूंका|
आज तो घर घर खुले हुये हैं,
मुये तवायफखाने,
हर कालेज मन्दिर के बाहर,
खुले हुये मैखाने|
मोबाइल दुकान हो गये,
मौत का सामान हो गये,
नहीं डर किसी का अब तो,
अश्लील वीडियो आम हो गये|
सड़के तो अब साफ हो गईं,
पर मन हो रहे हैं गंदे,
बहन, बेटियों की चिंता भी,
हैं सामाजिक धंधे|
गुरू जी गोरू हो गये,
चेला चंचल राग,
चेली हो गई चंचला,
रहीं गुरू संग भाग|
समाधान, व्यवधान है,
कौन करेगा बात;
कविता होती बंद अब,
बहुत हो गई रात|
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